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Vasundhara Raje and Rahul Gandhi will be the face of Rajasthan assembly elections.

राजस्थान में इसी वर्ष के अंत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने अपनी रणनीति पर जमीनी काम शुरू कर दिया है। प्रदेश में भाजपा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के चेहरे के सहारे चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। वसुंधरा राजे इनदिनों प्रदेशभर की 40 दिवसीय ‘राजस्थान गौरव यात्रा’ पर है। इस दौरान वे जनता को पूर्ववर्ती कांग्रेस शासन की हकीकत से रूबरू करा रही है। इसके पलटवार के लिए कांग्रेस भी 11 अगस्त को राहुल गांधी को जयपुर ला रही है। राहुल के रोड शो और मंदिर दर्शन के जरिए भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने के साथ कांग्रेस चुनावी युद्ध का ऐलान करेगी।

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Image: वसुंधरा राजे Vs राहुल गांधी.

वसुंधरा राजे को ऊर्जा देने का काम करेंगे पीएम मोदी और अमित शाह

वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आगामी चुनाव के लिए ऊर्जा देने का काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह करेंगे। वहीं कांग्रेस के लिए राहुल गांधी के सिपहसालार के तौर पर प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट, पूर्व सीएम अशोक गहलोत और पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने का काम करेंगे। बता दें, वसुंधरा राजे की पहचान राजस्थान भाजपा में सबसे ताकतवर नेता की है। राजस्थान में भाजपा का मतलब ही वसुंधरा राजे है। ऐसे में भाजपा ने मुख्यमंत्री के प्रत्याशी के तौर पर पहले ही उनके नाम की घोषणा कर दी है। इसके बाद वसुंधरा राजे राजस्थान गौरव यात्रा के जरिए 33 जिलों के 165 विधानसभा क्षेत्रों में घूम रही है।

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राहुल के हाथ में प्रचार की कमान होने से भीतरी लड़ाई से बचेगी कांग्रेस

प्रदेश कांग्रेस के भीतर सीएम फेस को लेकर चल रहे कोल्ड वॉर को ध्यान में रखते हुए पार्टी प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की ओर से बार-बार राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा की गई है। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व चाहता है कि चुनाव से पहले सीएम फेस को लेकर प्रदेश के प्रमुख नेताओं का किसी प्रकार का आपसी विवाद न हो। इसी को ध्यान में रखकर प्रदेश प्रभारी पांडे की ओर से यहां तक कहा गया है कि प्रदेश के सभी नेताओं की ओर से चुनाव के दौरान पूरा सहयोग किया जाएगा। कांग्रेस नेताओं का भी यह मानना है कि किसी एक व्यक्ति को सीएम चेहरा घोषित कर दिया जाएगा तो, दूसरा या तीसरा गुट नाराज हो जाएगा। इससे चुनाव के दौरान पार्टी को बड़ा नुकसान होने की आशंका पैदा हो जाती है। इसी को ध्यान में रखकर शीर्ष नेतृत्व ने राहुल के रुप में बीच का रास्ता निकाला है।