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राजस्थान में स्वाइन फ्लू से पिछले 16 दिन में 40 मौतें, जोधपुर में 21 ने दम तोड़ा, पिछले 24 घंटों में 46 लोग संक्रमण का शिकार

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पूरी तरह से स्वाइन फ्लू की जकड़ में आ चुके राजस्थान में मौत का सिलसिला शुरू हो गया है जो थमने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार ने प्रारंभिक स्तर पर इसे हल्के में लेना भारी पड़ रहा है। अब हालात कुछ ऐसे हैं कि स्वाइन फ्लू के बढ़ते कहर पर लगाम लगाने में वर्तमान सरकार पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है। प्रदेश में संक्रमण से लगातार हो रही मौतों का बोझ भी सत्ता में बैठी सरकार को ज्यादा नहीं लग रहा है। शायद यही वजह होगी कि इतनी मौत के बाद भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की चुप्पी नहीं टूट रही। सत्ताधारी सरकार अभी भी हर रोज बंगला नंबर 8 में लोकसभा चुनाव और प्रदेश की सीटों पर मंथन कर रही है।

चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा  ‘मौसमी बीमारी’ कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। वैसे इस संक्रमण के बढ़ने की वजह है विभाग का इसे हल्के में लेना और जागरुकता की कमी।

आंकड़ों पर एक नजर डाले तो पिछले 17 दिनों में प्रदेशभर में स्वाइन फ्लू से 40 से अधिक मौत हो चुकी हैं जबकि पॉजिटिव केसेज की संख्या भी बढ़कर 1036 हो गई है। गुरूवार को 46 लोग स्वाइन फ्लू के संक्रमण का शिकार पाए गए हैं। इसी से साफ नजर आ रहा है कि बीमारी रोकने में विभाग कितना सचेत है। गुरुवार को जयपुर में 24, अलवर में 9, उदयपुर में 6 और जोधपुर में 5 पॉजिटिव केस सामने आए हैं। स्वाइन फ्लू ने पूरे प्रदेश को जिस तरह अपनी जद में लिया है उससे स्वास्थ्य विभाग मुकाबला नहीं कर पा रहा है। सरकार की लेटलतीफी और जागरुकता के पर्याप्त प्रयासों के अभाव में स्वाइन फ्लू प्रदेश में मौत का तांडव कर रहा है।

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राजधानी जयपुर की बात करें तो यहां अब तक सर्वाधिक 401 स्वाइन फ्लू पॉजिटिव केस पाए गए हैं जिनमें 40 चारदीवारी के हैं। 5 लोगों की मौत भी इस दौरान हुई है। स्वाइन फ्लू से सर्वाधिक 13 मौतें भी जोधपुर में हुई है जो वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह जिला है। अब भले ही स्वास्थ्य विभाग चला रहा डोर-टू-डोर सर्वे अभियान चलाने का दावा कर रही है, लेकिन हकीकत तो यह है कि स्वाइन फ्लू न सरकार और न विभाग के काबू में नहीं आ रहा है।

प्रदेश में स्वाइन फ्लू का प्रकोप इतना क्यों बढ़ रहा है, जिसकी वजह को चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा  ‘मौसमी बीमारी’ कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। वैसे इस संक्रमण के बढ़ने की वजह है विभाग का इसे हल्के में लेना और जागरुकता की कमी। स्वाइन फ्लू की रोकथाम के लिए सरकार के प्रयास देरी से शुरू किए और जब प्रयास शुरू हुए तो केवल शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित रहे। संक्रमण रोकथाम का ज्यादा प्रचार-प्रसार केवल शहरों में किया गया और ग्रामीण इलाकों को उनके हाल पर छोड़ दिया। जागरुकता के अभाव में वहां न जांच एवं दवा मिल पाई और न ही कोई सुविधा। समय के साथ यह बढ़ता गया और उसका भुगतान अब हो रहा है।

संपूर्ण प्रकरण पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की चुप्पी अब तक समझ से परे नजर आ रही है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि या तो उन्हें इसकी जानकारी नहीं है या फिर लोकसभा चुनावों का लोड इतना अधिक है कि इसके लिए समय नहीं निकाल पा रहे हों। ठीक बिलकुल ऐसा ही उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ भी है। अगर ऐसा ही है तो कोसने के अलावा कोई और चारा शेष नहीं है, कभी सरकार को और कभी जालिम मौसम को।

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