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राजस्थान सहित मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में सोमवार को मुख्यमंत्री पद के लिए ताजपोशी हो चुकी है। कुर्सी पर बैठते ही जैसा कि कांग्रेस ने वायदा किया था, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों को कर्जमाफी की सौगात भेंट कर दी। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश के 16.65 लाख किसानों का 6,100 करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया है। साथ ही 2500 क्विंटल धान खरीदने की घोषणा भी की है। वहीं मध्य प्रदेश के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी प्रदेश के किसानों का 2 लाख तक की सीमा का फसली ऋण माफ कर दिया है। अब जैसा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने वायदा किया है, राजस्थान की बारी भी शायद जल्दी ही आने वाली है।

राजस्थान में भी अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री और सचिन पायलट ने उप मुख्यमंत्री पद ग्रहण कर लिया है। अब कर्जमाफी की बारी प्रदेश के किसानों की है। अब इन दोनों ही दिग्गज कांग्रेसियों को शपथ ग्रहण किए हुए दो दिन हो चुके हैं। वायदे के अनुसार अगले 8 दिनों में राजस्थान के किसानों को कर्जमाफी की सौगात निश्चित तौर पर मिल जाएगी। लेकिन अभी तक इस बारे में न तो राज्य के नए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और न ही नए नवेले उप मुख्यमंत्री बने सचिन पायलट की ओर से कोई अधिकारिक घोषणा आयी है। वैसे याद दिला दें कि हाल ही में पूर्व सीएम वसुन्धरा राजे ने किसानों को 50 हजार रुपए तक की फसली ऋण से मुक्ति दिलाई थी जिसपर कुल भार करीब साढ़े नौ हजार करोड़ रुपए आया था। इसके लिए सहकारी अपेक्स बैंक को एनसीडीसी से डवलपमेंट फंड के नाम पर 5 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेना पड़ा था। अब शेष किसानों का अगर एक लाख रुपए तक भी फसली ऋण माफी किया जाए तो भी करीब 99 हजार करोड़ रुपए का भार राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ना निश्चित है।

एक वजह यह भी है कि राज्य की कुल उधारी सीमा भी समाप्त हो चुकी है। ऐसे में अगर राजस्थान की नई सरकार को यदि प्रदेश के किसानों का कर्जमाफ करना है तो उसके लिए अपना नया बजट लाना होगा। लेकिन असली समस्या तो यह है कि एमपी और छत्तीसगढ़ सरकार के अपनी-अपनी जनता को कर्जमाफी देने के बाद राजस्थान के किसानों की पूरी उम्मीदभरी नजरें राज्य के नए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं हमारे नए उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की ओर टकटकी लगाए हुए है कि कब यह दोनों इस बारे में कोई घोषणा करें। लेकिन जैसा कि भूतकाल में होता आया है, यहां ऐसा होना संभव होते दिख तो नहीं रहा है। फिर भी यह राजस्थान है जहां करिश्में हो न हों, उम्मीद पूरी रहती है। शायद यहां से भी कोई उम्मीद की किरण फूट कर रोशनी की एक ज्योत जला दें।

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