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पिछले राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जो गत हुई थी, उसे सभी जानते हैं। कांग्रेस पार्टी महज 21 सीटों पर सिमट गई थी। इस चुनाव में कई दिग्गजों को मुंह की खानी पड़ी। लोकसभा चुनाव 2014 में तो इससे भी बुरा हुआ और कांग्रेस 25 में से एक भी सीट अपने नाम नहीं कर सकी। इस बार 6 मुख्यमंत्री चेहरों के साथ चुनावी मैदान में उतरी कांग्रेस ने किसानों के पूर्ण कर्जमाफी का दांव खेला और सत्ता हासिल कर ली, लेकिन डेढ़ महीने से ज्यादा बीतने के बाद भी इस ओर कोई कदम नहीं उठाया गया। अब किसानों को कर्जमाफी का वायदा देकर सत्ताधारी सरकार खुद फंस गई है।

गौर करने वाली बात यह है कि राजस्थान चुनावों से पहले कांग्रेस ने पूर्ण कर्ज माफ किए जाने का ऐलान किया था लेकिन सत्ता मिलते ही पहले तो 2 लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने की घोषणा की। इस संबंध में जब पता चला कि सरकार को 18 हजार रुपए का भार वहन करना होगा तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर प्रदेश के किसानों का कर्ज माफ करने की अनुनय किया।

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इस साल लोकसभा चुनाव को देखते हुए अगले महीने में आचार संहिता लगने की संभावना है जिसे देखते हुए कांग्रेस अपने ही फैलाए हुए जाल में फंसती दिख रही है। दरअसल बीजेपी 8 फरवरी से जेल भरो आंदोलन शुरु करने जा रही है। ऐसे में कांग्रेस इससे पहले ही यानि 7 फरवरी से किसानों को कर्जमाफी के सर्टिफिकेट बांटने की तैयारी में है। साथ ही काम चलाने के लिए एनसीडीसी से 1500 करोड़ का कर्जा लेने की बात कही जा रही है। हालांकि 18 हजार करोड़ रुपए की कर्जमाफी के आगे यह राशि ऊंट के मुंह में जीरा साबित होगी। इसके बाद भी लोकसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस का यह नाकाफी सियासी दांव कहा जा सकता है।

राजस्थान कांग्रेस सरकार की परेशानियां यहीं खत्म नहीं हो रही है। 11 फरवरी से फिर विधानसभा शुरू वाली है जिसे देखते हुए कांग्रेस आनन फानन में यह फैसला ले रही है। इससे पहले कांग्रेस को पहले विधानसभा सत्र में विपक्ष ने कर्जमाफी के मुद्दे पर जमकर निशाना साधा था। इसके अलावा भी कुछ रोड़े नजर आ रहे हैं। 15वें वेतन समझौते की पालना नहीं होने पर सहकारी बैंककर्मी आंदोलन कर रहे हैं। उन्होंने भी 8 फरवरी को महापड़ाव और 11 फरवरी को हड़ताल पर जाने की चेतावनी दे रखी है। अगर सहकारी बैंककर्मियों का आंदोलन जारी रहता है तो कर्जमाफी में खलल पड़ना तय है।