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अशोक गहलोत, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट
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अशोक गहलोत, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट

जैसे-जैसे साल 2018 एक-एक दिन गुजर रहा है। राजस्थान में दिसंबर में होने वाले चुनावों के मद्देनज़र राजनीतिक सरगर्मी बढ़ती जा रही है। भारतीय जानता पार्टी व कांग्रेस के अलावा अन्य राजनीतिक दलों में भी हलचल शुरू हो गयी है। कोई स्वतंत्र चुनाव लड़ने की सोच रहा है तो कोई गठबंधन करने की तैयारी कर रहा है। इन सब के बीच मुख्य रूप से दो पार्टियों में खुली प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। एक तरफ़ सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी है, जो अपने कार्यकाल में किये गए विकास कार्यों को प्रदेश कि जनता के समक्ष रखते हुए, सम्पूर्ण राज्य में ‘राजस्थान गौरव यात्रा’ कर रही हैं। पहला चरण उदयपुर संभाग में पूर्ण हो चुका है, और लोग जिसे अभूतपूर्व समर्थन और अपार स्नेह दे चुके हैं। यात्रा दूसरा चरण 16 अगस्त से भरतपुर संभाग में शुरू होगा।

दूसरी तरफ़ कांग्रेस ने भी अपनी पार्टी कि दावेदारी को प्रबल करने कि कोशिश करते हुए 11 अगस्त को राजधानी जयपुर में रोड शो भी कर दिया, जिसमे राहुल गांधी को मुख्य चुनावी चेहरा बनाया गया। इसका एक कारण ये भी है कि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी का कोई प्रबल दावेदार नेता रहा नहीं। कांग्रेस गुटबाजी कि समस्या से जूझ रही है, जिसकि झलक 11 अगस्त को रामलीला मैदान के मंच पर साफ़ देखने को मिली। जब राहुल गांधी को सचिन पायलट और अशोक गहलोत को गले मिलवाना पड़ा। जनता के सामने कांग्रेस कि दोहरी राजनीति की मार पड़ रही है। एक ओर अशोक गहलोत है, जिनके दिन अब लद से गए हैं। दूसरी ओर सचिन पायलट है, जिनमें अभी इस तरह की जिम्मेदारी के अनुभव की कमी है।

इन सब बातों के इतर कांग्रेस पार्टी का एक और पहलू सामने आ रहा है जो है कांग्रेसियों का गिरता हुआ राजनीतिक स्तर। कांग्रेस के नेता आये दिन ऐसे-ऐसे बोगस बयान देते रहे हैं, जिनका वास्तविकता से दूर-दूर तक कोई लेना देना ही नहीं होता। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमिटी के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट जिस रूप से भाजपा सरकार पर थोथे आरोप लगते हैं, उनकी राजनीति अपरिपक्क्वता को दर्शाते हैं कि अभी उनमे अनुभव कि बहुत कमी है। नागौर में किसान द्वारा कि गयी आत्महत्या के लिए सरकार को दोष दिया जा रहा है। जबकि पीड़ित के परिजन स्वयं कह चुके हैं कि अभियुक्त पहले से ही पारिवारिक कारणों के चलते तनाव में था। चूंकि एक ओर चुनावी माहौल और दूसरी ओर राजस्थान गौरव यात्रा की सफलता से चिंतित, पायलटजी पहुंच गए मौक़े पर चौका मारने। जिस सक्रियता से उनके कार्यकर्ताओं ने मौत की ख़बर उन तक पहुंचाई, उसी सतर्कता से मौत से पहले वो उन तक क्यों नहीं पहुंच पाए। जबकि मुख्यमंत्री पहले से ही प्रदेश के किसानों कि क़र्ज़ माफ़ी की घोषणा कर चुकी थीं। पाइलट का ये भी कहना है, कि वसुंधरा के कार्यकाल में सैकड़ों मंदिर तोड़े गए। फिर वही छोटी बात। अब उनको कौन समझाए कि पिछले 5 सालों में जितने भी विकास कार्य हुए हैं, उनके चलते ही जो मंदिर विकास के मार्ग में आ रहे थे, उन्हें या तो विस्थापित कर दिया गया या फिर बहुत ज़्यादा जरूरी होने पर ही उन्हें हटाया गया। लेकिन धर्म को राजनीति बनाने वाले ये लोग या तो समझ नहीं रहे या अभी समझने कि कोशिश नहीं कर रहे।

अशोक गहलोत भी बयानों की कलाबाज़ी दिखाने में कम नहीं रहे। पहले खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार बता दिया फिर अपनी ही बात से पीछे हटते हुए मामला हाई कमान पर टाल दिया। जो ये भी बयान देते फिर रहे हैं कि जनता बीजेपी सरकार से त्रस्त हो चुकी है। हम अगर सत्ता में आये तो भामाशाह योजना को बंद कर देंगे। लेकिन अशोकजी ये बात नहीं जानते कि भामाशाह योजना को बंद करने के बाद वो राजस्थान के 5 करोड़ भामाशाह कार्डधारी लोगों को क्या देंगे।

राहुल बाबा आये थे वो भी रटी-रटाई बात बोल के चले गए। 15 लाख़ रूपये, 2 करोड़ रोज़गार, रॉफेल सौदा… आदि। राहुल बाबा ये नहीं जानते कि अकेले राजस्थान में ही 15 लाख़ लोगों को रोज़गार दिए गए तो पूरे हिंदुस्तान का हिसाब किसी रिश्तेदार के घर बैठ कर कैलकुलेट कर लें।  फिर ये भी बता दें कि दस साल केंद्र में रहते हुए और 40 साल देश में रहते हुए उनकि सरकार ने क्या किया। देश की सफाई या जनता की  जेबों की सफाई।

इसके अलावा कांग्रेस के नेता अव्यवस्थाओं सहित बिना मतलब कि बातों का राग आलापते रहते हैं जिससे कांग्रेस में बढ़ती हुई बौखलाहट को साफ़ तौर पर देखा जा सकता है। अव्यवस्थाओं का शानदार नज़ारा जो 11 अगस्त को देखने को मिला था। जब कांग्रेस के कार्यकर्ता रोड शो के नाम पर एयरपोर्ट से लेकर रामलीला मैदान तक यातायात को अवरुद्ध करते नज़र आये। ख़ैर आने वाले विधानसभा चुनावों में क्या होने वाला है, ये तो समय ही बताएगा। फिलहाल तो कांग्रेसी जिस तरह से धर्म, जाति, किसान और वर्ग के नाम पर बिना सिर पैर की राजनीति कर रहे हैं। उससे स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि कांग्रेस के राजनीति के स्तर में भारी गिरावट आयी है जिसका प्रभाव आने वाले समय में कांग्रेस को देखने को मिलेगा।