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सदन में शपथ ग्रहण करते हुए कांग्रेसी विधायक।

चुनावी शपथ पत्र में अपने आप को साक्षर बताया, लेकिन जब सदन में शपथ लेने पहुंची तो ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ निकला।

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सदन में शपथ ग्रहण करते हुए कांग्रेसी विधायक।

झूठ झूठ और सिर्फ झूठ। राजस्थान विधानसभा के पहले दिन मंगलवार को सबसे जो देखा, उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस के विधायकों से यही देखना बाकी रह गया था। झूठ की हद तो देखिए कि नामांकन भरते समय कांग्रेस के जिन विधायकों ने साक्षरता का प्रमाण दिया, वहीं सदन में स्वयं शपथ ग्रहण तक न कर सके। लिहाजा आसन पर मौजूद प्रोटेम स्पीकर गुलाबचंद कटारिया ने उनके लिए शपथ बोली और सदन की सदस्यता को मुकम्मल किया। हद तो तब हो गई जब सदस्यता पत्र पर हस्ताक्षर करने की जगह भी अंगूठा लगा दिया।

ऐसे ऐसे अजूबे केवल कांग्रेस राज में ही हो सकते हैं और यह कारनामा किया है कांग्रेस की बगरू विधायक गंगा देवी ने, जो लगातार दूसरी बार विधानसभा में पहुंची हैं। गंगा देवी ने नामांकन दाखिल करते समय चुनावी शपथ पत्र में अपने आप को साक्षर बताया, लेकिन जब सदन में शपथ लेने पहुंची तो ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ निकला। वह शपथ लेने के लिए खड़ी तो हुईं लेकिन कुछ पढ़ या बोल नहीं पायी। फिर स्थिति को भांपते हुए प्रोटेम स्पीकर गुलाबचंद कटारिया ने उनके लिए भी शपथ बोली और उसका दोहराव करके गंगा देवी शपथ कार्यक्रम की इतिश्री की।

ऐसा ही कुछ हुआ मेड़ता से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की विधायक इंदिरा देवी के साथ। इंदिरा देवी जैसे ही शपथ ग्रहण करने के लिए पोडियम पर पहुंचीं तो उन्होंने आसन पर मौजूद गुलाब चंद कटारिया की तरफ देखा। मेड़ता विधायक भी खुद नहीं पढ़ सकती थी तो स्पीकर गुलाबचंद कटारिया ने उनके लिए शपथ बोली। खुद पढ़ कर शपथ नहीं ले पाने के बावजूद इंदिरा देवी ने सदन में मौजूद लोगों को तब एक बार फिर हैरान करते हुए दस्तखत करने की जगह अंगूठा लगाया और सदन की सदस्यता को पूरा किया।

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खास बात यह रही कि शपथ के लिए प्रोटेम स्पीकर की मदद लेने वाली दोनों ही विधायक पढ़े-लिखे नेताओं को हराकर सदन में पहुंची हैं। खैर जो भी हो लेकिन जब सरकार को सच्चाई ज्ञात है, उसके बाद भी चुनावी आवेदन में ही छूट का सहारा ले लिया। अब यह बात सामने आ ही गई है तो सभी इस बात पर कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं। पिछली विधानसभा में भी बयाना के विधायक बच्चू सिंह बंशीवाल ऐसे विधायक थे, जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे. उन्होंने भी चुनावी शपथ पत्र में स्वयं को 8वीं तक साक्षर दर्शाया था।

अब मुद्दे की बात यह है कि जब किसी सत्ताधारी सरकार के विधायक न तो कुछ पढ़ सकते हैं और न ही लिख सकते हैं। और तो और हस्ताक्षर तक नहीं कर सकते तो कैसे वह जनता का और पढ़े-लिखे युवाओं की समस्याओं को सदन तक ला पाएंगे। सबसे ताजिब की बात तो यह है कि जिस पार्टी ने उन्हें टिकट दिया है, उन्होंने भी इस बात को पता करने की जरूरत महसूस नहीं की। जब सरकार अपने ही विधायकों की सच्चाईयां पिछले 5 साल में जान नहीं पायी तो अगले 5 सालों में प्रदेश के युवाओं के साथ कैसे न्याय कर पाएगी।

वहीं पूर्ववर्ती वसुन्धरा सरकार राजस्थान के सरपंच और जिला परिषद सदस्यों के साथ ही पंचायत समिति के सदस्यों के चुनाव में भी शैक्षणिक योग्यता लागू कर चुकी थी। हाल ही में कांग्रेस ने सत्ता ​हथियाते ही शैक्षणिक योग्यता को गौण कर दिया। उस समय पंचायती राज चुनाव में शैक्षणिक योग्यता को लेकर कांग्रेस ने खूब होहल्ला मचाया था। अब इन विधायकों की अंगूठा छाप योग्यता को लेकर सवाल उठ रहे हैं जिसका जवाब देने के लिए शायद प्रदेश के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों के पास ही समय नहीं है।

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