news of rajasthan

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हमारी दुनिया कितनी रंग-बिरंगी है। है ना? हर दिन इस दुनिया का कोई नया रंग देखने को मिल जाता है। अब राजस्थान की राजनीति को ही ले लीजिये। राजस्थान विधानसभा चुनावों को संपन्न हुए 20 दिन, राजस्थान चुनाव परिणाम घोषित हुए 15 दिन, कांग्रेस की नयी सरकार के नए मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री को शपथ लिए 10 दिन और राजस्थान के नए मंत्रिमंडल का को शपथ लिए हुए 3 दिन बीत चुके हैं। मगर अभी तक कांग्रेस सरकार से विभागों का बंटवारा तक नहीं हुआ है। हाँ ये बात अलग है, कि कांग्रेस सरकार के जननायकों ने अपने हिसाब से सरकारी अफ़सरों की अदला-बदली करके उनके विभागों का फेरबदल ज़रूर कर दिया है।

क्योंकि जनता से पहले तो कांग्रेस के लिए अपने काम हैं ना। अब जनता का क्या है? जनता को तो आदत हो गयी है ना लाइन में खड़े होने की, अपने सरकारी काम पूरा होने का इंतजार करने की। और फिर जनता तो सारी ज़िन्दगी यहीं रहने वाली है, कहीं जा थोड़े रही है। जाती तो सरकार है! हर पांच साल में। तो सरकार को पहले अपनी चिंता की चिंता रहती है। जनता को संभालने के लिए तो है ना दूसरी सरकार जो पांच साल बाद आकर जनता के ज़ख्मों पर न केवल मरहम लगाएगी बल्कि उनको हष्ट-पुष्ट करके जाएगी। तो ऐसे में वर्तमान सरकार अपना भला कर सकती है। और कर भी रही है। अपने हिसाब से सारे अधिकारीयों का तबादला करना। अपने-अपने चहेतों को उनकी पसंद की जगह और विभाग देना। राजस्थान के 33 ज़िलों में से 30 जिलों के जिला कलेक्टरों का तबादला इधर से उधर किया जा चुका है। लेकिन जिन मंत्रियों को कांग्रेस ने बीते सोमवार को मंत्रिपद की शपथ दिलवाई थी, उन्हें अब तक मंत्रालयों का जिम्मा नहीं सौंपा गया है। क्योंकि अभी तक कांग्रेस से मंत्रीयों के पद ही तय नहीं हो पा रहे हैं।

इस लेटलतीफ़ी के निम्न्लिखित कारण हो सकते हैं…

पहला कारण: हर मामले में गांधी परिवार की दख़लअंदाज़ी –

ये बात तो सब लोगों जानते हैं कि किसी भी पार्टी के सभी राजनीतिक फ़ैसले उस पार्टी के आलाकमान या सभी छोटे-बड़े पदाधिकारी मिलकर करते हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी की बात आती है, तो पता नहीं क्यों ये नियम ताक पर रख दिया जाता है। अब देखिये ना! पहले टिकिट वितरण, फिर चुनावी नियंत्रण, फिर मुख्यमंत्री पद के लिए घमासान, फिर मंत्रिमंडल के लिए विधायकों का चयन और अब मंत्रियों को विभागों का बंटवारा हर फ़ैसला दिल्ली में ही किया गया। वो भी सिर्फ़ और सिर्फ़ एक परिवार के लोगों द्वारा। अब राहुल गांधी जी तो राष्टीय अध्यक्ष हैं, चलिए मान लेते हैं सोनिया गांधी के पास भले ही फ़िलहाल पार्टी का कोई बड़ा पद ना हो लेकिन पूर्वअध्यक्ष के तौर पर वो अपनी राय दे सकती हैं। लेकिन प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा का क्या हक़ है? जो राजस्थान के साढ़े सात करोड़ लोगों पर अपना एकाधिकार जमाते हुए अपना फ़ैसला उन पर थोपते हैं। क्या राजस्थान की जनता के द्वारा चुने गए विधायकों को गांधी परिवार इस लायक भी नहीं समझता कि जिस प्रकार जनता ने कांग्रेस पार्टी की सरकार को चुनकर अपना फैसला सुनाया, उसी प्रकार सभी विधायक आपस में मिल-बैठ कर इस बात फैसला कर सकें कि कौनसी ज़िम्मेदारी कौन संभालेगा? या फिर गांधी परिवार आज भी इस देश को अपनी जागीर और देश की जनता को अपना गुलाम समझता है, कि जो फ़ैसला ये लोग दिल्ली में बैठकर जनता पर थोप देंगे वो जनता सिर झुकाकर मान लेगी।

दूसरा कारण: मंत्रीपद इस हिसाब से बांटना कि सबकी रोटी सिकती रहे –

वैसे तो कांग्रेस पार्टी ने हिंदुस्तान की नंबर वन घोटालों की पार्टी का ख़िताब अपने नाम किया हुआ है। फिर भी कुछ नेता हैं, जो पहले भी और आज भी अपनी स्वच्छ और ईमानदार छबि के लिए जाने जाते हैं। लेकिन कहते हैं ना “काजर की कोठरी में कैसो हू सयानो जाय, एक लीक काजर की लगि है पै लागि है।” मतलब जो सालों से घोटालों की पार्टी में रहे हैं, वो भी वक़्त के साथ छोटे-मोटे घोटाले करना तो सीख ही गए होंगे। और जो नए हैं वो इसका प्रशिक्षण ले रहे होंगे। ऐसे में कांग्रेस की आलाकमान ये बात तय नहीं कर पा रही होगी कि कौनसा पद किसे दें और कौनसा विभाग किसे? ताकि अगर कोई घोटाला कर भी दे तो पार्टी से बाहर किसी को कानों कान खबर नहीं हो और अंदर ही अंदर सबकी रोटियां भी सिकती रहे। इसलिए योग्य मंत्री को उचित विभाग का बंटवारा करने में जो समय लगता है, वही समय कांग्रेस को लग रहा है।

बाकी देश सेवा, जनसेवा, देशभक्ति, ईमानदारी, समय पर टैक्स, पाठ पूजा, नहीं-नहीं पाठ पूजा नहीं पाठ पूजा भी इनका काम है। इसके अलावा सरकारी शक्तियों और संम्पतियों का दुरूपयोग नहीं करना। ये सब तो जनता का काम है। सरकार का काम तो आना और जाना है।