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प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने आज ही के दिन राजस्थान के पोकरण में परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। अचानक किए गए इन परमाणु परीक्षणों से अमेरिका, रूस व पाकिस्तान समेत कई देश दंग रह गए।

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11 मई, 1998 का दिन। यह वहीं दिन था जब भारत परमाणु शक्ति से लैस विश्वशक्तियों में शामिल हुआ था। आज ही के दिन 20 वर्ष पूर्व पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की अगुआई में पोकरण शहर में पहला परमाणु परीक्षण किया गया। यह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वायपेयी के अटल इरादों का ही नतीजा था कि भारत आज परमाणु विश्वशक्तियों में शुमार है। यह मिशन कुछ इस तरह से अंजाम दिया गया कि आधुनिक सूचना और खुफिया तंत्र में अपने को सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करने वाले अमेरिका समेत पश्चिमी राष्ट्रों को भारत की परमाणु परीक्षण योजना की कानोकान भनक तक नहीं लगी। आज पोकरण में न्यूकलियर टेस्टिंग की 20वीं सालगिरा/वर्षगांठ है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने बधाई दी है।

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान-जय किसान का नारा दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वायपेयी वाजपेयी ने जय विज्ञान जोड़कर इस नारे को नया क्षितिज दिया।

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परमाणु परीक्षण स्थल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अब्दुल कलाम।

इस प्रॉजेक्ट के साथ जुड़े वैज्ञानिक कुछ इस कदर सतर्कता बरत रहे थे कि वे एक दूसरे से भी कोड भाषा में बात करते थे और एक दूसरे को छद्म नामों से बुलाते थे। ये झूठे नाम इतने हो गए थे कि कभी-कभी तो साथी वैज्ञानिक एक दूसरे का नाम भूल जाते थे। उस दिन सभी को आर्मी की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया गया था ताकि खुफिया एजेंसी को यह लगे कि सेना के जवान ड्यूटी दे रहे हैं। ‘मिसाइलमैन’ अब्दुल कलाम खुद वहां सेना की वर्दी में मौजूद थे। डॉ. कलाम को कर्नल पृथ्वीराज का छद्म नाम दिया गया था। 10 मई की रात को योजना को अंतिम रूप देते हुए ऑपरेशन को ‘ऑपरेशन शक्ति’ नाम दिया गया। परमाणु बम के एक दस्ते को ‘ताजमहल’ कहा जा रहा था। अन्य कोड वर्ड्स थे वाइट हाउस और कुंभकरण।

मिशन को इतना सीक्रेट रखा गया था कि तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को तक अंतिम समय पर रखा गया था। परमाणु बम को भाभा आणविक शोध केंद् से मुंबई हवाई अड्डे तक, यहां से जैसलमेर और फिर पोखरण तक पहुंचाने जैसा कठिन कार्य को एक सोची-समझी योजना के तहत अंजाम दिया गया था। परीक्षण के समय तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन भी यहां उपस्थित थे।

बता दें, अमेरिका को हल्की ही भनक लगी थी कि भारत परमाणु परीक्षण करने की सोच रहा है। इसी के चलते इस परीक्षण से केवल महीनेभर पहले 14 अप्रैल, 1998 को नई दिल्ली दौरे पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत पर सीटीबीटी पर हस्ताक्षर करने का दबाव डाला। तब उन्हें यह अहसास नहीं था कि भारत अगले महीने ही परमाणु परीक्षण करने जा रहा है।

कहा जाता है, पोखरण परीक्षण के बाद दुनिया के शक्तिशाली देशों ने गुस्से में भारत की आर्थिक नाकेबंदी की। अमेरिका सहित अन्य शक्तिशाली राष्ट्र केवल इसलिए नाराज थे, क्योंकि भारत ने उनके विकसित सूचना तंत्र को नाकाम कर अपना सफल परीक्षण कर लिया था। उस समय अमेरिका के चार जासूसी उपग्रह 24 घंटे पूरी दूनिया की निगरानी करते थे जिन पर उस समय अमेरिका 27 अरब डॉलर प्रति वर्ष खर्च करता था।

अमेरिका के जासूसी उपग्रह प्रत्येक तीन घंटे पर भारत के ऊपर से गुजरते थे। ऐसे में योजना बनाई गई कि जब उपग्रह पोखरण के ऊपर से गुजरने वाले हों, तब परीक्षण स्थल पर धुआं कर दिया जाए ताकि अमेरिका को लगे कि लोग खाना पका रहे हैं। पोखरण परीक्षण के बाद गुस्साए अमेरिकी प्रशासन ने सीआइए को जांच करने को कहा था कि उसके जासूसी उपग्रहों को कैसे नहीं पता चला कि भारत परमाणु परीक्षण करने जा रहा है।

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