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दुष्कर्म पीड़ितों को मिलने वाले धीमे न्याय के चलते राजस्थान सरकार ने एक बड़ी पहल को अंजाम देते हुए हर जिले में पॉक्सो अदालत खुलने पर सहमति जताई है। इस फैसले के अनुसार अब से हर जिले में पॉक्सो कोर्ट खुलेंगी ताकि पीड़िताओं को जल्द से जल्द न्याय मिले और अपराधी को सजा।

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असल में पॉक्सो एक्ट कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। जानकारी के अनुसार प्रदेश में पॉक्सो अधिनियम से जुड़े करीब साढ़े 5 हजार केस लंबित है। हाल ही में इस एक्ट में संशोधन किया गया था जिसके तहत जिसके तहत अब 12 साल तक की बच्ची से रेप के दोषियों को मौत की सजा मिलेगी। साल 2012 में आए पॉक्सो अधिनियम के तहत हर जिले में एक विशेष कोर्ट खोली जानी थी। लेकिन फिलहाल प्रदेश की राजधानी जयपुर में ही पॉक्सो कोर्ट खोली गई है।

अगले 6 महीनों में 11 जिलों में खुलेंगी पॉक्सो कोर्ट

वैसे तो हर जिले में पॉक्सो कोर्ट खोले जाने पर सहमति बन गई है। फिलहाल पॉक्सो मामलों की सबसे ज्यादा पेंडेसी जिन 11 जिलों में है, उनमें अगले 6 महीनों के भीतर पॉक्सो कोर्ट खोली जाएंगी। बाकी बचे 21 जिलों में चरणबद्ध तरीके से तीन साल के भीतर कोर्ट खोल दिए जाएंगे। विधि विभाग के प्रस्ताव पर 11 न्यायालय खोलने का एक प्रस्ताव मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को भी भेज दिया गया है।

इन 11 जिलों में सबसे ज्यादा केस पेंडिंग

  • कोटा – 497
  • अलवर – 423
  • पाली – 289
  • भीलवाड़ा – 269
  • भरतपुर – 268
  • बारां – 266
  • जोधपुर – 262
  • बूंदी – 257
  • झालावाड़ – 245
  • उदयपुर – 231
  • अजमेर – 227

क्या है पॉक्सो एक्ट और क्या है प्रावधान

पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) का पूरा नाम प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (The Protection Of Children From Sexual Offences Act) है। यह कानून सरकार ने साल 2012 में बनाया था। इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है। वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है।

इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस तरह की हो ताकि बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो। मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और पीड़ित अगर लड़की है तो उसकी मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए। इस केस की सुनवाई बंद कमरे में करने का प्रावधान है और इस दौरान बच्चे की पहचान गुप्त रखना भी जरूरी है। स्पेशल कोर्ट, उस बच्चे को दिए जाने वाली मुआवजे की राशि भी तय कर सकता है।

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