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नई दिल्ली में आयोजित ‘राष्ट्रीय बहुरुपिया उत्सव’का एक दृश्य।

बहुरूपी कला एक ऐसी कला है जो लोगों को मन से जोड़ती है और उनके भीतर दबी हुई भावनाओं और अपेक्षाओं को उजागर करती है।

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नई दिल्ली में आयोजित ‘राष्ट्रीय बहुरुपिया उत्सव’का एक दृश्य।

नई दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में इन दिनों तीन दिवसीय ‘राष्ट्रीय बहुरुपिया उत्सव’ का आयोजन हो रहा है। इस उत्सव में राजस्थान सहित गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, तेलंगाना, कर्नाटक, तामिलनाडू, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के 70 बहुरूपी कलाकार अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं। किसी जमाने में जनता के दिलों के करीब रही और प्राचीन काल से चली आ रही बहुरूपी कला आज मृत प्राय हो रही इस भारतीय कला को सम्बल देने और लोगों में इस कला के प्रति सम्मान जगाने के उद्देश्य से यह आयोजन हुआ है। इस उत्सव का आयोजन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में उदयपुर के जाने माने रंगकर्मी विलास जानवे के निर्देशन में आयोजित इस उत्सव में आमजन 5 अक्टूबर से 7 अक्टूबर के बीच इन बहरूपियों की कला और काम करने का तरीका भी देख सकेंगे।

उत्सव के दौरान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के पूरे परिसर में बहुरूपी कला पर पहली बार फोटोग्राफ, पेन्टिग्स, म्यूरल, मूर्ति कला और इंस्टालेशन कला की प्रदर्शनी लगेगी। केंद्र के परिसर में 7 अक्टूबर (रविवार) को सुबह 9.30 से 12.30 तक ‘बहुरुपिया बच्चों के साथ’ नामक कार्यक्रम में बहुरूपिये बच्चों की पसंद के कोमिक और कार्टून चरित्र जैसे छोटा भीम, कृष्णा, हनुमान, जिन्न, जोकर, चाचा चौधरी, साबू, स्पाइडर मेन और कई मनोरंजक वेश बना कर घूमेंगे।

बहुरूपी कला एक ऐसी कला है जो लोगों को मन से जोड़ती है और उनके भीतर दबी हुई भावनाओं और अपेक्षाओं को उजागर करने का अवसर देती है। इस अनूठी कला के इस मर्म को यह उत्सव उजागर कर रहा है। यह देश की बहुत पुरानी कला रही है। इस कला का उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। अपने भक्तों का रक्षण और उद्धार करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने नाना रूप धरे एवं इतिहास के सन्दर्भ में देखें तो राजा महाराजा और बादशाह के दरबारों में बहुरूप धारण करने वाले विशेषज्ञ कलाकारों और ऎय्यारों का ज़िक्र आता है जो स्वयं नाना प्रकार के स्वांग रच कर एक ओर अपने शासक का मनोरंजन करते तो दूसरी तरफ उनके लिए जासूसी का भी काम करते।

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जानवे ने बताया कि कृष्ण भगवान की बहुरूपी कलाकार के रूप से हम सभी परिचित हैं। बहुरुपिया आमजन का मनोरंजन करते हुए जनजागरण का भी काम करता है। जब मनोरंजन के अन्य साधन नहीं थे तब बहुरूपियों को शादी ब्याह और उत्सवों में बुलाया जाता था। बहुरूपिये भी पौराणिक, ऎतिहासिक, सामाजिक और फ़िल्मी किरदार बन कर अपनी कला का लोहा मनवाते व इनाम पाते और अपने परिवार का गुज़ारा करते थे, नित नया वेश बना कर बहुरुपिया समाज के हर वर्ग का मनोरंजन करता है, उत्तर और पूर्व भारत में वह एकल या युगल वेश धरता है जबकि दक्षिण भारत में बहुरुपिया समूह में अपनी कला प्रदर्शित करते हैं। इन दिनों इस नायाब कला जुड़े हुए लोग अपने अस्तिव के लिए जूझ रहे हैं। मनोरंजन के दूसरे साधनों ने इस विलक्षण कला को हाशिये में ला खड़ा किया है।

उत्सव में बहुरूपियों का कमरा भी प्रदर्शित होगा जिसमें बहुरुपिया तैयार कैसे होता है। उत्सव की कोर टीम के सदस्य विलास जानवे (उदयपुर), रुपेश सहाय (आम लोगों के लिए बहरूपियों के साथ सेल्फीन दिल्ली), सुनील मिश्र (भोपाल), कृष्णा काटे (पुणे) उत्सव की प्रस्तुतियों और नवाचारों को लेकर काफी उत्साहित हैं। उत्सव के पहले चुनिन्दा बहुरूपी कलाकार दिल्ली के कुछ विद्यालयों में अपना प्रदर्शन देकर बच्चों के सामान्य ज्ञान और व्यवहार ज्ञान को बढ़ाएंगे।

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