Nathuram Mirdha
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नाथूराम मिर्धा, राजस्थान में यह नाम कोई अनजाना नहीं है। आज नाथूराम मिर्धा की 21 वीं पुण्यतिथि है। एक राजनीतिज्ञ, समाज सेवक और स्वतंत्रता सेनानी थे नाथूराम मिर्धा। मारवाड़ के किसानों के दिलों पर नाथूराम मिर्धा ने वर्षों तक राज किया है। उनका जन्म 20 अक्टूबर, 1921 को राजस्थान के नागौर जिले के कुछेरा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम थानाराम मिर्धा था। उनकी पत्नी का नाम केसर देवी था जिनके 2 पुत्र व 2 पुत्रियां थी। जोधपुर के दरबार हाई स्कूल से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की और अर्थशास्त्र में मास्टर्स की। 1944 में लखनऊ विश्वविद्यालय से वकालत (एलएलबी) की डिग्री भी ली।

Nathuram Mirdha
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नाथूराम मिर्धा एक ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े थे इसलिए किसानों से उनका झुकाव पहले से ही था। वकालत के दो साल बाद उन्होंने किसान सभा नाम की एक किसान इंस्ट्टयूट में सेकेटरी पद पर ज्वॉइन किया और बाद में जोधपुर जिले के रेवेन्यू मंत्री बना दिए गए। 15 अगस्त, 1947 के बाद किसान सभा एक प्रसिद्ध मिनिस्ट्री बन चुकी थी और नाथूराम उसके जनरल सेकेट्ररी। उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1952 में मेड़ता सिटी से लड़ा और भारी मतों से जीत हासिल की। राजस्थान सरकार में उन्होंने 1952 से लेकर 1967 और 1984 से लेकर 1989 तक का समय बिताया और कई मंत्री पदों पर काम किया। अपने कार्यकाल में नाथूराम मिर्धा राजस्थान के पहले वित्त मंत्री भी रह चुके हैं।

मिर्धा अब तक राजस्थान में कृषि और उद्योग के रहनुमा के तौर पर जाना जाने लगे थे। 1972 तक उन्होंने 6 बार राज्यसभा की सदस्या भी ग्रहण की थी। 1979-80 और 1989-90 में मिर्धा यूनियन कांउस्लिंग मिनिस्टर भी रहे। नेशनल एग्रीकल्चर प्राइसेस कमिशन के चैयरमेन के तौर पर भी उन्होंने काम किया है। इस पद पर रहते हुए उन्होंने किसानों के लिए कई योजनाओं का निर्माण किया था। मिर्धा ने 10 साल तक महाराजा सुरजमल इंस्ट्टयूट, नई दिल्ली में बतौर चैयरमेन पदभार संभाला है।

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1975 में इंदिरा गांधी से कुछ मतभेदों के चलते उन्होंने नेशनल कांग्रेस पार्टी को छोड़ लोकदल पार्टी का दामन थाम लिया जिसके मुखिया चौधरी चरण सिंह थे। यहां से उन्होंने 1971 और 1977 के चुनावों में भारी मतों से जीत हासिल की। अपनी मेहनत व लगन के दम पर उन्होंने लोकदल पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की प्रसिद्धि दिलाई। 1988 में उन्हें लोकदल पार्टी का राज्य अध्यक्ष बनाया गया।

1991 में उन्होंने 14 साल बाद फिर से कांग्रेस पार्टी का हाथ थाम लिया और 1991 और 1996 में चुनाव जीता।5 साल तक उन्होंने कांग्रेस-1 पार्लियामेंट के उपाध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभाला। 1996 में लोकसभा चुनाव उन्होंने जीता। उनकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि उन्होंने बीजेपी के एच.कुमावत को एक लाख साठ हजार वोटो से सीधी पटखनी दी। इसी पद पर रहते हुए 30 अगस्त, 1996 में 75 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गई। इसी सीट पर उपचुनावों में बीजेपी ने उनके पुत्र भानू प्रकाश मिर्धा को टिकट देकर लड़वाया और सीट अपने नाम कर ली।

नाथूराम मिर्धा ने राज्य सिंचाई मंत्री, फाइनेंस, फूड एंड सिविल सप्लायर्स मंत्री के साथ कई पार्लियामेंट कमेटी के चैयरमेन पद पर कार्यभार संभाला है। उन्होंने किसानों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के कारण सेवा की। पेशे से एक वकील, उन्होंने कई शैक्षणिक संस्थानों और छात्रावासों की स्थापना करके शिक्षा के क्षेत्र में भी सेवा की। आज नाथूराम मिर्धा हमारे बीच नहीं है लेकिन हमेशा ही किसानों के मसीहा के तौर पर जाने जाएंगे।

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