soil free farming by nandlal from Udaipur
कोको पीट पद्धति से उगाई गई नंदलाला डांगी की खीरे की खेती
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कोको पीट पद्धति से उगाई गई नंदलाला डांगी की खीरे की खेती

क्या बिना मिट्टी की खेती की जा सकती है। शायद सभी का जवाब होगा बिलकुल भी नहीं। लेकिन राजस्थान के उदयपुर जिले के किसान नंदलाल डांगी ने पॉली हाऊस में बिना मिट्टी की खेती यानि मृदा रहित खेती उगाकर कमाल कर दिया है। तहसील-वल्लभनगर के ग्राम-महाराज की खेड़ी के रहने वाले नंदलाल डांगी ‘कोको पीट तकनीक’ (नारियल के बुरादे) का उपयोग करते हुए खीरे की खेती कर रहे हैं। आपको बता दें कि 7 से 9 नवंबर को उदयपुर में आयोजित होने वाले 3 दिवसीय ग्लोबल राजस्थान एग्रीटेक मीट (ग्राम) के दौरान ‘कोको पीट’ खेती और पॉली हाउस की तकनीकें भी प्रदर्शित की जाएंगी।

अपनी नई कोको पीट तकनीक से नंदलाल डांगी को 4000 वर्गमीटर पॉली हाऊस से करीब 450 क्विंटल खीरे का उत्पादन हुआ। इस बिना मिट्टी की खेती से उसने औसतन 15 रूपए प्रति किलोग्राम के भाव से बाजार में बेचा तो उसे एक लाख रूपए से अधिक का शुद्ध मुनाफा प्राप्त हुआ।

ऐसे हुई पॉली हाऊस की स्थापना

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नंदलाला डांगी-image source: khaskhabar.com

नंदलाल डांगी ने अपनी पत्नी माया एवं छोटे भाई शिवदयाल के नाम से राजकीय सहायता प्राप्त कर 8000 वर्गमीटर (2 एकड़) भूमि पर संरक्षित खेती हेतु तीन पॉली हाऊस की स्थापना वर्ष 2013 में की और स्थानीय कृषि एवं उद्यान विभाग के मार्गदर्शन में इन पॉली हाऊस में खीरा, टमाटर व शिमला मिर्च की खेती आरम्भ की। लेकिन कुछ समय बाद ही जब टमाटर व खीरा की नई फसल भूमि सूत्र कृमि (निमेटोड़) से बुरी तरह ग्रसित हुई। इसी दौरान नंदलाल डांगी को पता चला कि कोको पीट तकनीक (नारियल के बुरादे) में खेती करने से सूत्र कृमि की समस्या नहीं आती।

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कोको पीट पद्धति से उगाई गई नंदलाला डांगी की खीरे की खेती

इसी जानकारी के लिए नंदलाला डांगी ने गुजरात के एक कन्सलटेन्ट की सेवाएं लेकर करीब 10 लाख रूपऎ की कोको पीट खरीदी और 5-5 किलोग्राम की प्लास्टिक की थैलियों में भरकर कुल 13,000 थैलियों में बीजारोपण कर एक एकड़ पॉली हाऊस क्षैत्र में खीरे की खेती शुरू कर दी। फर्टिगेशन विधि द्वारा बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली और विभिन्न प्रकार के सॉल्ट की व्यवस्था की गई ताकि पौधों को समस्त 16 तत्वों से पोषित किया जा सके। बुवाई के करीब 45 दिवस पश्चात् फूल आने लगे व खीरे लगने लगे। बिना मिट्टी की यह खेती पूर्ण रूप से तंदरूस्त व सूत्र कृमि प्रकोप रहित थी।

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