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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने प्रदेश को जल क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने के लिए जल स्वावलंबन अभियान की शुरुआत की। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रयासों से राजस्थान जैसे रेगिस्तानी प्रदेश में जल क्रांति लाने का कार्य बखुबी किया हैं। जल क्षेत्र में राजस्थान अन्य राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा पिछड़ा हुआ था। प्रदेश में केवल 25 ऐसे जोन थे जिनमे पानी था लेकिन मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान से राजस्थान के 25 जोन से बढ़कर 50 जोन ऐसे हो गये हैं जिनमे पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हैं।

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने लिखा लेख

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा लिखा गया एक लेख शुक्रवार को अखबार में छपा था। सीएम राजे ने इस लेख के माध्यम से बताया कि कैसे जल स्वावलंबन अभियान कि शुरुआत हुई ? इस अभियान को कैसे प्रदेश में सफल बनाया जाएं। कैसे प्रदेश को जल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जाए। जल स्वावलंबन अभियान को लागू करने में किन समस्याओं का सामना करना पड़ा। राजस्थान जैसे रेगिस्तानी प्रदेश में किस प्रकार से इस अभियान को शुरु किया जा सकता हैं। आखिर कैसे इस अभियान की प्रेरणा मुख्यमंत्री राजे को मिली। जल स्वावलंबन अभियान के लिए किसने उन्हे प्रेरित किया ?

सुराज संकल्प यात्रा के दौरान लिया था जल संकट खत्म करने का फैसला

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने लेख में कहा हैं कि राजस्थान का जिक्र होता है तो पानी का सवाल सबसे पहले जेहन में आता है। ईश्वर से अच्छी बारिश की प्रार्थना करते किसानों के ललाट पर खिंची चिंता की लकीरें देखकर मैंने सुराज संकल्प यात्रा के दौरान ठान लिया था कि जो भी हो इस विकराल समस्या से उबरने के लिए मिलकर प्रयास करेंगे। यहां मैं पहले ‘परिवर्तन यात्रा’ का भी जिक्र करना चाहूंगी।

इस प्रसंग से मिली मुख्यमंत्री राजे को जल स्वावलंबन अभियान की प्रेरणा

मुख्यमंत्री एक प्रसंग बताती है जहां से उन्हे प्रदेश को जल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की प्रेरणा मिली। उन्होने अपने लेख में बताया कि जब मैं भीलवाड़ा जिले में जहाजपुर के पास एक गांव से गुजर रही थी तो सड़क के किनारे 20-25 महिलाओं का जमघट लगा था। मैंने जिज्ञासावश गाड़ी रुकवाई। पता चला कि ये महिलाएं कुएं से पानी निकालने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही थीं। उनकी तकलीफ को महसूस करने के लिए मैंने एक बाल्टी ली और कुएं से पानी निकालने लगी। कुआं बहुत गहरा था, रस्सी खींचते-खींचते मेरे हाथ दर्द करने लगे। बहुत मुश्किल से बाल्टी बाहर निकाल पाई। तब मैंने जाना कि इनका जीवन सिर पर पानी की मटकियां रखकर रोजाना कई किलोमीटर आने-जाने में बीत जाता है।

जल समस्या का स्थाई समाधान

सीएम राजे ने जब प्रदेश के एक इलाके की औरतों को पानी के लिए इस तरह की समस्याओं का समाना करते देखा तो उनसे रहा नही गया। महिलाओं की तरह ही उन्होने कुएं से पानी निकालने और उसे अपने घर तक ले जाने में आनी वाली समस्याओं को महसूस किया। जिसके बाद उन्होने 2003 में जल बचाने का प्रण लिया और प्रदेश की महिलाओं को इस गुलामी से मुक्त करने की महत्वाकांक्षी अभियान चलाया।  वे कहती हैं कि 2003 में जब हमारी सरकार बनी तब हमने ‘जल चेतना अभियान’ के माध्यम से लोगों में जल संचय के प्रति जागृति लाने का प्रयास किया, किंतु 2008 में हमारी सरकार चली गई और राजस्थान वहीं का वहीं ठहर गया, लेकिन पांच वर्ष बाद प्रदेशवासियों ने एक बार फिर हमें जिम्मेदारी सौंपी। हमारे सामने जो चुनौतियां थीं, उनमें सबसे बड़ी और गंभीर थी पानी की समस्या। ढेरों विकल्पों पर विचार करने के बाद एक बात समझ में आई कि अब तात्कालिक उपाय नहीं, स्थाई समाधान निकालना है। इसके लिए तो हमें स्वयं ही ऐसे सामूहिक प्रयास करने होंगे, जिनमें 7 करोड़ राजस्थानियों में से हर कोई कुछ कुछ योगदान दे।

मुश्किलों के बावजूद मिली राज्य सरकार को सफलता

मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान इसी विचार मंथन का परिणाम था। इस अभियान  शुरु करने में कुछ मुश्किलों का सामना जरुर करना पड़ा लेकिन मुख्यमंत्री राजे को प्रदेश की जनता के भरपूर सहयोग मिला। उन्होने कहा कि शुरू में यह अभियान चलाना मुश्किल लग रहा था, लेकिन पहले ही चरण में लोगों का अभूतपूर्व सहयोग मिला और पूरा होते-होते तो यह जल क्रांति में तब्दील हो गया। हमने मानसून से पहले लक्ष्य पूरे किए तो 94 हजार से ज्यादा जल संरचनाओं में से 95 प्रतिशत लबालब भर गईं। अभियान वाली कई जगह 15 फीट तक भू-जल स्तर ऊपर गया। फिर सोचा कि इस पानी को सहेजने के लिए पेड़ों की भी जरूरत है, लिहाजा अभियान के दौरान ही वन महोत्सव शुरू किया गया, जिसके तहत 28 लाख से ज्यादा पौधे इन जल संरचनाओं के समीप लगाए।

जल स्वावलंबन से मिला स्वस्थ पानी, स्वस्थ पर्यावरण

राजस्थान सरकार द्वारा जल स्वावलंबन अभियान की सफलता के कई उदाहरण सामने आये। प्रदेश में जहां पहले पानी के लिए तरसना पड़ता था वहीं आज हर घर पानी के लिए किसी के सामने हाथ नही फैलाता हैं। वसुंधरा सरकार के जल स्वावलंबन अभियान को प्रदेश भर में सराहा ज रहा हैं। मसलन, सिरोही जिले के कृष्णगंज गांव में तालाब का जीर्णोद्धार करने के लिए दो हजार लोग एक साथ जुटे और एक ही दिन में सूरत बदल गई और नागौर जिले के खोखर गांव में 28 हजार एलोवेरा के पौधे रोपे गए। पानी सहेजने के साथ ही आमदनी का स्रोत भी पुख्ता हो गया।

प्रधानमंत्री ने प्रसंशा, देश-विदेश में मिली नई पहचान

राज्य सरकार के जल स्वावलंबन अभियान से प्रेरित होकर कई अन्य राज्यों ने भी इसे स्वीकारा। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान व वन अभियान की सफलता के लिए राजस्थान सरकार की प्रसंशा की। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और तेलंगाना जैसे राज्य इससे प्रेरणा लेकर ऐसा कार्यक्रम शुरू करना चाहते हैं। ब्रिक्स राष्ट्रों के सम्मेलन में भी इस अभियान की तारीफ की गई। दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, नामीबिया जैसे देशों ने तो इस मॉडल को अपने देश में शुरू करने के लिए रुचि दिखाई है।

जल स्वावलंबन अभियान का दूसरा चरण

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा कि जल स्वावलंबन अभियान के पहले चरण की अपार सफलता के बाद राज्य सरकार इसके दूसरे चरण को धरातल पर ला रही हैं। उन्होने कहा कि हम 9 दिसंबर 2016 को हम प्रदेश में इस अभियान के दूसरे चरण की शुरुआत कर रहे हैं। अबकी बार हमने 4 हजार 200 गांवों और 66 शहरों एवं कस्बों को जल क्रांति से जोड़ने का निश्चय किया है। शहरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पर जोर दिया जाएगा।

ऐसा था जल स्वावलबंन अभियान का पहला चरण

वसुंधरा सरकार ने पिछली सरकारों द्वारा किए गये जल बचाने के नाकाफी कार्यों को देखते हुए एक जल आंदोलन की शुरुआत की। 27 जनवरी 2016 से पूरे प्रदेश में मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान को आंदोलन के रुप में चलाया गया।  इसी अभियान का परिणाम है कि 6 महिनों में 3 हजार 529 गांवों में 1192 करोड़ रुपए की लागत से 92 हजार 552 कार्य पूर्ण करवाए गये। इस अभियान से जल संग्रहण और वृक्षारोपण का ऐसा कार्य हुआ जिससे प्रदेश के किसान वर्ग और आम लोगों को फायदा मिला।