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महात्मा ज्योतिबा फुले
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महात्मा ज्योतिबा फुले

महात्मा ज्योतिबा फुले 19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें ‘महात्मा फुले’ एवं ‘ज्‍योतिबा फुले’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए काफी काम किया। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1848 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किए। आज महात्मा ज्योतिबा फुले की 191वीं जयंती है। इस मौके पर मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सहित कई नेताओं ने देशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं। साथ ही महात्मा ज्योतिबा फुले को श्रद्धाजंली दी है।

महात्मा ज्योतिबा फुले की जीवनी

महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में हुआ था। उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था। एक वर्ष की अवस्था में इनकी माता का निधन हो गया। इनका लालन-पालन एक बाई ने किया। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लग गए। उसी समय इना नाम ‘फुले’ पड़ गया। ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई। 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की। इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्‍वयं एक प्रसिद्ध समाजसेवी बनीं। दलित व स्‍त्रीशिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्‍नी ने मिलकर काम किया।

ब्राह्मण मित्र के विवाह ने बदला जीवन

एक बार ज्योतिबा अपने ब्राह्मण मित्र के विवाह में गए थे। बारातियों को जब ये पता चला कि वे माली जाति के हैं, तो उन्होंने ज्योतिबा को न केवल अपमानित किया, वरन् बाहर जाने को कहा। इस अपमान ने उन्हें भीतर तक हिलाकर रख दिया। उन्हें लगा ऐसे धर्म में रहकर क्या फायदा, जो जाति-पांति के नाम पर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेदभाव करता है। ऐसी संकीर्ण विचारधारा ने भारतीय धर्म को पतन की ओर धकेला है। उन्होंने सामाजिक बुराई से लड़ते हुए मनुष्यता के उत्थान का संकल्प लिया।

महिला उत्थान के लिए कार्य किया, पहला स्कूल भी खोला

उन्‍होंने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए काफी काम किया। उन्होंने इसके साथ ही किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1848 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया। उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए।

सत्यशोधक समाज की स्थापना

गरीबो और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं- तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत. महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’पास किया। धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी। उनकी मृत्यु 28 नवम्बर, 1890 को 63 वर्ष की आयु में पुणे में हुई।