गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

ख़ुश तो बहुत होओगे तुम आज। हमारा राष्टीय उत्सव जो आ रहा है… गणतंत्र दिवस आ रहा है। वैसे कई लोग तो इस दिन को सिर्फ़ छुट्टी के रूप में ही मनाते हैं। क्योंकि देश-धरम से तो इनको कुछ लेना देना है नी, फिर सरकार और नेताओं को कोसते रहते हैं। हमारा देश दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है, जहां प्रजातान्त्रिक और गणतांत्रिक दोनों व्यवस्थाएं स्थापित हैं। हिंदुस्तान संसदीय प्रणाली वाला एक प्रभुतासम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणराज्य है। लेकिन अपने देश के संविधान की श्रेष्ठता का ज्ञान तभी होगा, जब यहां की शासन प्रणाली का थोड़ा बहुत अध्ययन करेंगे। हर भारतवासी को पता होना चाहिए कि जिस देश में रह कर वो अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहा है वहां की शासन व्यवस्था और संविधान के सापेक्ष में उसके क्या-क्या अधिकार और कर्तव्य हैं। तभी हम समझ पाएंगे की देश का सबसे ज़्यादा भला किसने किया और किसने सिर्फ़ दिखावा किया?

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

गणतंत्र दिवस कब, क्या और कैसे?

26 जनवरी 1950 को विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान को जनता के द्वारा अंगीकृत किया गया था। हमारी सबसे बड़ी दुविधा तो यही है। हम मानते हैं कि इस दिन हमारा संविधान लागू हुआ था। जबकि सच्चाई ये है कि 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू नहीं हुआ था बल्कि हिंदुस्तान की जनता को इसे समर्पित किया गया था। वरना लागू तो ये 2 महीने पहले, 26 नवम्बर 1949 को ही हो गया था। इसीलिए हर साल 26 नवम्बर, भारत में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 26 जनवरी को तो सिर्फ़ कांग्रेस ने अपना नाम ऊँचा करने के लिए चुना क्योंकि इससे ठीक 20 साल पहले, 26 जनवरी1930 को ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई० एन० सी०) ने अपनी तरफ़ से भारत को पूर्ण स्वराज घोषित कर दिया था।

हमारे संविधान को बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 का समय लगा था। संविधान निर्माण के लिए बनायीं गई 22 समितियों में से एक प्रारूप समिति सबसे महत्वपूर्ण थी। इस प्रारूप समिति ने ही “संविधान को लिखा” या कह सकते हैं उसका “निर्माण” किया। इसी प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, महान विधिज्ञ डॉ० भीमराव आंबेडकर। जिन्हें भारतीय संविधान का जनक भी कहा जाता है। लेकिन भारतीय संविधान के बारे में अलग-अलग मतों में कहा जाता है कि… जो मूल संविधान बाबा साहेब आंबेडकर ने बनाया था उसे तो तत्कालीन आकाओं ने लागू नहीं किया। उन्होंने जनता के लिए सिर्फ़ वही नियम और कानून लागू किये जिनसे जनता को कम और उन्हें ख़ुद को ज़्यादा फ़ायदे हों। इस बारे में आंबेडकर साहेब ने कहा भी था कि “मैं तो हिंदुस्तान की जनता के लिए ताजा मीठे फलों की टोकरी लाया था, मगर नामदारों ने उन फलों को चूस लिया और जनता के लिए मात्र छिलके और गुठलियां ही छोड़ी हैं।” इसके अलावा मूल संविधान में आरक्षण व्यवस्था को भी मात्र 10 सालों के लिए ही लाया गया था। लेकिन यहां भी नामदारों ने अपने नाम का फ़ायदा उठाया और अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए आरक्षण व्यवस्था को 10 सालों से घसीट कर 70 सालों तक ले आये।

राजतंत्र, लोकतंत्र और गणतंत्र :

राजतंत्र या राजशाही में किसी देश का राजा ही वहां का शासक और शासन व्यवस्था का अधिनायक होता है। आम तौर पर राजा का पुत्र या शाही परिवार का कोई सदस्य ही अगला राजा होता है। ये परंपरा वंशानुगत होती है। जैसा कांग्रेस आज भी करती आ रही है। 28 दिसम्बर 1885 के बाद से 134 सालों तक बहुत काम बार ऐसे मौके आये जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कमान किसी ग़ैर के हाथों में रही हो, वरना ज़्यादातर समय तो एक परिवार विशेष के लोग ही कांग्रेस के सर्वेसर्वा रहे हैं। पहले नेहरू परिवार और फिर बाद में गांधी परिवार। मज़े की बात तो ये है कि जिस महात्मा गांधी का उपनाम इस्तेमाल कर कांग्रेस पार्टी वर्षों से हिंदुस्तान  की जनता को बेवकूफ़ बनती आ रही है, ऐसे महात्मा के परिवार एक भी सदस्य ना तो कांग्रेस पार्टी का हिस्सा है और ना ही कांग्रेस ने उनका कोई भला किया है। गांधी जी के नाम पर कांग्रेस सिर्फ़ राजतंत्र चलती आ रही है।

जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए चुना गया शासन ही लोकतंत्र कहलाता है। जहां जनता स्वयं अपने प्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजती ताकि वे सब मिलकर जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाये जिनसे जनता का भला हो, देश विकास की राह पर आगे बढ़े। लेकिन पिछले 62 सालों में जनता ने जिन प्रतिनिधियों को चुनकर संसद भेजा था, उन्होंने जनता के हितों में तो कम और अपने हितों में ज़्यादा से ज़्यादा नीतियां बनायीं। जिनका परिणाम हम आज भी हिंदुस्तान में बढ़ी हुई जनसंख्या, बेरोज़गारी और बेगारी के रूप में देख रहे हैं। इसकी बहुत बड़ी ज़िम्मेदार कांग्रेस पार्टी है। जिन्होंने 6 दशकों तक सिर्फ़ अपने घरों को भरा।

अब बारी आती है गणतंत्र की। कहने को तो हिंदुस्तान लोकतान्त्रिक गणराज्य है। मगर यहां पीढ़ी-दर-पीढ़ी अप्रत्यक्ष रूप से राजतंत्र चला आ रहा है। गणतंत्र में संविधान सर्वोच्च होता है, और प्रजातंत्र में जनता। गणतंत्र में विधि का विधान यानि कानून का राज होता है, तो प्रजातंत्र में बहुमत का। जिसके पास बहुमत वही शासक। मतलब कांग्रेस ने दोनों तरह से देश पर काबू कर रखा था। चूंकि पहले कांग्रेस के अलावा जनता के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था तो जनता को मज़बूरन कांग्रेस को चुनना पड़ता था। अगर कोई ग़ैर कांग्रेसी विकल्प बनने की कोशिश करता तो उसे रास्ते से हटा दिया जाता। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत वर्ष के वो सात ग़ैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं, जिनका कांग्रेस ने सत्ता खोने के डर से कार्यकाल भी पूरा नहीं होने दिया और सरकारें गिरा दी गयी। ऐसे में बहुमत हमेशा कांग्रेस के पास रहा। जब बहुमत कांग्रेस के पास तो शक्ति भी कांग्रेस के पास ही ज़्यादा होती थी। गणतंत्र में गणमान्य लोग ही संविधान में संशोधन कर सकते हैं, और कांग्रेस के ये गणमान्य लोग कांग्रेस के हितों को ही ध्यान में रखते हुए संशोधन करते थे। कांग्रेस ने कई बार बहुमत का नाजायज़ फ़ायदा भी उठाया। क्योंकि बहुमत का शासन बहुसंख्यक के शासन में बदल गया था। इसलिए हमारे संविधान बनाने वालों ने प्रजातंत्र के थोड़े “पर” कुतर दिए। देश में बहुमत को नहीं बल्कि संविधान को श्रेष्ठता दी गयी। गणतंत्र में बहुसंख्यक, मात्र बहुमत के आधार पर किसी व्यक्ति, समाज या अल्पसंख्यक समुदाय के मूलभूत अधिकारों के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते। वजह प्रजातंत्र में बहुमत निरंकुश और सर्वशक्तिमान होता है।

बहुमत के मद में कांग्रेस ने कई बार निरंकुशता दिखाई :

कांग्रेस देश की पहली और सबसे बुज़ुर्ग राजनीतिक पार्टी है। इसकी स्थापना तो देश की भलाई के लिए ही की गयी थी लेकिन आज़ादी के बाद नेहरू परिवार ने इस पर एकाधिकार कर लिया था। नेहरू के बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस पर अपना अधिपत्य जमा लिया था। इंदिरा काल में एक समय ऐसा भी आया जब कांग्रेस के हाथों से हिंदुस्तान का राज फिसलने ही वाला था कि सत्ता के मद में चूर इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगवा दिया। हिदुस्तान के इतिहास में आपातकाल एक ऐसा समय कहा जाता है, जब गांधी परिवार ने पूरे हिंदुस्तान की जनता को उनके ही घरों के क़ैद कर दिया था। बहुमत के विरुद्ध अल्पमत को कोई संरक्षण नहीं होता। इसी आशंका के चलते हमारे संविधान में मूलभूत अधिकारों को परिभाषित किया गया और इन मूलभूत अधिकारों की सीमा के बाहर से प्रजातंत्र की शुरुआत होती है।

हिंदुस्तान की जनता इस बात को कभी समझ नहीं पायी की गांधी परिवार ने हमेशा उन्हें अपने टुकड़ों पर ज़िन्दा रखा। अपना पेट भरने के बाद जितना बचा उसे जनता के लिए छोड़ दिया गया। जिसे पाकर ही हिंदुस्तान की आवाम अपने आपको शहंशाह समझती थी। अपना घर भरने के चक्कर में कांग्रेस ने भारतीय गणतंत्र को खोखला कर दिया और इन 69 सालों में हमारा गणतंत्र बूढ़ा हो चूका है। उम्मीद करते हैं आने वाले समय में देश देश की जनता हमारे संविधान की महत्ता को समझेगी और लोकतंत्र में ऐसे लोगों को चुनकर भेजेगी जो आने वाले समय में हमारे संविधान को अधिकाधिक युवा बनाये ना कि बूढ़ा। जय हिन्द, जय भारत, जय गणतंत्र।

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Author : Mahendra