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डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी
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डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी

भारतीय जन संघ पार्टी के संस्थापक-अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाने के पक्षधर डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की आज पुण्यतिथि है। देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी खुद भारतीय जन संघ पार्टी की उत्तराधिकारी है जिसका 1977 में जनता पार्टी में विलय हुआ था। जनता पार्टी के आतंरिक मतभेदों के फलस्वरूप 1979 में जनता पार्टी सरकार गिरने के पश्चात 1980 में भारतीय जनता पार्टी का एक स्वतंत्र दल के रूप में उदय हुआ था|

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी एक दक्ष राजनीतिज्ञ, विद्वान और स्पष्टवादी के रूप जाने जाते थे और अपने मित्रों एवं शत्रु द्वारा सामान रूप से सम्मानित थे| एक महान देशभक्त और संसद शिष्ट के रूप में देशभर में उन्हें सदैव स्मरण किया जाएगा।

उनकी 66वीं पुण्यतिथि पर आज राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।


डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को कलकत्ता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ. मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बीए की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वह विदेश गए और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। 33 वर्ष की अल्पायु में वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी इस पद पर नियुक्ति पाने वाले सबसे कम आयु के कुलपति थे।

डॉ. मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे।

वह मानते थे कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हुई परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से थी। वह मानते थे कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही रक्त के हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। परन्तु उनके इन विचारों को अन्य राजनैतिक दल के तत्कालीन नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। बावजूद इसके लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया।

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमंत्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमंत्रीकहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ. मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की।

ब्रिटिश सरकार की भारत विभाजन की गुप्त योजना और षड्यन्त्र को एक कांग्रेस के नेताओं ने अखण्ड भारत सम्बन्धी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया। उस समय डॉ॰ मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया। राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनायी जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था। अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ का उद्भव हुआ।

अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराउंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।

उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।

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