राजस्थान में चुनावी बिसात बिछ चुकी है, आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। सत्ता पक्ष अपने कामों को लेकर जनता के बीच जा रही है तो कांग्रेस सपनों को। जी हां, सुनने में भले ही अजीब सा लगे, लेकिन ये सच है। ये वो कड़वा सच है जो कांग्रेस भले ही नहीं सुनना चाहती, लेकिन जनता जानना जरूर चाहती है।

‘किसान मर रहा है,’ ‘आत्महत्या कर रहा है।’ ‘किसानों को मुआवजा नहीं मिला।’ ‘एक और किसान ने की आत्महत्या।’

इस तरह की खबरें मीडिया में आम हो चली है। कारण भी स्पष्ट है, अन्नदाता अब चुनावी मुद्दा जो बन गया है। माफ कीजिए बन नहीं गया, बना दिया गया है।

जी हां! दरअसल, भाम्रक खबरें फैलाकर प्रदेश की जनता को गुमराह किया जा रहा है। गुमराह कोई और नहीं कर रहा, बल्कि कुछ प्रतिष्ठित अखबार और न्यूज वेबसाइट है, जिन्हें आप पढ़ते हैं। और जो पैसे लेकर झूठी खबरें छाप रही हैं। या यूं कहें चुनावी मौसम में पैसे लूटने की तैयारी कर चुकी है। और तैयारी भी ऐसी की हर कोई गच्चा खा जाएं। लेकिन ये शायद भूल गए, ये जनता है साहेब। एक-एक चीज का हिसाब लेती है, और हिसाब भी ऐसा कि इनको नानी याद आ जाए।

कुछ ऐसा ही इंग्लिश न्यूज पेपर ‘इकोनॉमिक्स टाइम्स’ ने किया। टाइम्स ने 24अगस्त को एक आर्टिकल छापा। जिसमें किसानों को बहुत ज्यादा क्रोधित और परेशान बताया गया है। आर्टिकल में लिखा है कि मुख्यमंत्री ने अपने बजट भाषण में जिस 8 हजार करोड़ रुपये की ऋण माफी की बात की थी वो पूरा नहीं किया। लेकिन, इकोनॉमिक्स टाइम्स को शायद पैसे लेने की जल्दी थी, तभी तो खबर छापने से पहले पूरा होमवर्क नहीं किया। अब होमवर्क नहीं किया तो सजा मिलनी चाहिए, खैर छोड़िए हमें क्या। अब आपको वो आकड़े बताते हैं जो ‘इकोनॉमिक्स टाइम्स’ के पास नहीं थे, या थे और उसने काम में नहीं लिए। खैर इसे भी छोड़िए और एक नजर इन तथ्यों पर डालिए।

12 फरवरी 2018 को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 8 हजार करोड़ रुपये की ऋण माफी, जिसमें 50हजार रुपये तक फसली ऋण छूट योजना की घोषणा की थी। उसके बाद राज्य के सहकारी बैंकों ने इस योजना के तहत पात्र किसानों की पहचान करने के लिए एक अभियान शुरू किया। जिसमें लगभग 29.31 लाख किसानों पर 8414.53 करोड़ रुपये का ऋण होने की बात सामने आई, जिनका पूरा विवरण डीओआईटी और ऋण छूट पोर्टल पर सरकार द्वारा अपलोड भी कर दी गई है।

गौरतलब है कि सीएम वसुंधरा राजे ने 31 मई, 2018 को किसानों को ऋण माफी का प्रमाण पत्र वितरित कर ऋण माफी योजना का उद्घाटन भी किया था। राजस्थान में आज तक 5943 शिविर आयोजित किए जा चुके हैं। इन शिविरों के माध्यम से 24.07 लाख किसान कुल 7338.24 करोड़ रुपये की राशि से लाभान्वित हो चुके हैं।

वहीं जमीनी हकीकत की बात करे तो राज्य में शॉर्ट टर्म सहकारी ऋण प्रकिया से संबंधित कृषि ऋण बढ़ने से किसी भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है। वर्तमान राज्य सरकार के कार्यकाल के दौरान रिकॉर्ड स्तर पर 34.64 लाख मीट्रिक टन कृषि उत्पादन की खरीद की गई है जिसकी कीमत 11 हजार 466 करोड़ रुपये हैं।

जिन हाड़ौती के लहसुन किसानों पर विपक्ष और बिकाऊ मीडिया सियासत करता है उनको जरा इन आकड़ों पर भी नजर डालनी चाहिए कि हाड़ौती के किसानों को राहत देने के लिए राज्य सरकार ने 90580 मीट्रिक टन लहसुन खरीद की है जिसकी कीमत 295.02 करोड़ रुपये हैं। इतना ही नहीं राज्य में 30 से अधिक खरीद केंद्र भी संचालित है। राजस्थान के 25017 किसानों को इससे फायदा हुआ है जो न केवल प्रदेश में, बल्कि देश में भी लहसुन की ऐतिहासिक खरीद थी।

तो जनाब ये वो आकड़े हैं जो सबके पास मौजूद है। सबका मतलब सबके पास ही है। सरकार ने बकायदा इन किसानों का पूरा डेटा अपलोड किया है। लेकिन शायद ‘इकोनॉमिक्स टाइम्स’ को मिला नहीं या फिर वो रकम ज्यादा थी जिसमें खबर छापने का, माफ कीजिए झूठी खबर छापने का सौदा हुआ था।

खैर अब आज के लिए इतना ही, नहीं तो ये मुझ पर भी आरोप लगाने लगेंगे।