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विधानसभा के गलियारों से लेकर सड़कों तक राजस्थान में एक ही बहस का मुद्दा है और वह हे आॅर्डिनेंस बिल। हाल ही में इसे विधानसभा में पेश किया गया था लेकिन हंगामें के बाद इसे प्रवर समिति को पुर्नविचार के लिए भेज दिया गया है। विपक्ष के साथ आम आदमी में भी लोक सेवकों को बचाने वाले इस विवादित अध्यादेश पर संयश के साथ कई भ्रांतियां भी है। इस सभी बातों का जवाब खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने दिया है। आइए, जानते हैं उनकी राय आॅर्डिनेंस बिल के बारे में ….

  • क्या आॅर्डिनेंस बिल भ्रष्ट लोगों को बचाने की एक कोशिश है
    यह बिल राजस्थान सरकार की ईमानदार लोक सेवकों को बचाने की एक कोशिश मात्र है। लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि 156(3) का दुरूपयोग हो रहा है। रिकॉर्ड को छाने तो पिछले 4 सालों में लोक सेवकों पर 2.69 लाख केस दर्ज हुए हैं जिनमें से 1.76 लाख केस झूठे व फर्जी पाए गए हैं। इस तरह 73 फीसदी केस झूठे निकले। 3 सीनियर आईएएस तक को जेल भेजा है। ऐसे मामलों में कई प्रतिष्ठित व ईमानदार लोक सेवकों की प्रतिष्ठा पर आंच पहुंची है। उनका मनोबल टूटा है और कामकाज भी प्रभावित हुआ है। हमारी मंशा दोषियां को बचाने की कतई नहीं है। सवाल उठे हैं इसलिए हमने इसे प्रवर समिति को सौंपा है।
  • दोषी के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज नहीं होगी
    बिल में ऐसा कुछ भी नहीं है। एफआईआर तो आज भी किसी के खिलाफ और किसी भी पुलिस थाने में दर्ज हो सकती है। फिर वह कितना भी बड़ा लोक सेवक क्यूं न हो।
  • मीडिया पाबंदी पर विवाद, दो साल तक की सजा
    मीडिया की आजादी लोकतंत्री की ताकत है। हमारी मंशा मीडिया पर कभी अंकुश लगाने की नहीं थी। प्रवर समिति इस विषय को प्रमुखता से देखेगी। हम भी चाहते हैं कि मीडिया की आजादी भी बनी रहे और ईमानदार एवं निर्दोष लोक सेवकों की छवि भी खराब न हो।sp
  • आॅर्डिनेंस बिल को गुपचुप लागू किया गया
    ऐसा कुछ भी नहीं है। सदन में बिल को सभी विधायकों के सामने पेश किया गया ताकि इसपर चर्चा व विचार—विमर्श हो सके। विधानसभा में कोई भी काम गुपचुप हो ही नहीं सकता है।
  • कार्यवाही में 6 महीने का समय काफी ज्यादा है
    इतना समय इसलिए दिया गया है ताकि जिस लोक सेवक पर आरोप है, वह अपनी सफाई रख सके। यह ईमानदार अफसरों को बचाने के लिए किया गया है। यह कहीं नहीं कहा है कि उन्हें इस अवधि में जांच से छूट मिल जाएगी।
  • क्या है आॅर्डिनेंस बिल का भविष्य
    बिल प्रवर समिति के पास है जिसमें पक्ष-विपक्ष दोनों हैं। जो निर्णय आएगा उसे मानेंगे।
    Source: Bhaskar

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