जैसे पक्षियों की कलरव, वैसे ही छोटे-छोटे स्कूली बच्चों की चहक। राजधानी जयपुर के मानसागर झील पर कुछ इसी तरह का माहौल है। बच्चों की आंखें आसमान से लेकर पानी की सतह तक टिकी हैं। किसी की नजर पंछियों की आंखों की ओर टिकी हैं तो कोई रंग-बिरंगे पंखों को निहार रहा है। बायनोक्यूलर विजन का ये बच्चे बर्ड फेयर में लुत्फ उठा रहे हैं।
राजधानी जयपुर स्थित मानसागर झील पर खुले आसमान में विचरण करते बर्ड्स और उनको देख उत्साहित होते स्टूडेंट्स। यह नजारा टूरिज्म एंड वाइल्ड लाइफ सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर से शुरू हुए 20वें इंडियन बर्डिंग फेयर में देखने को मिला। ‘फेयर कंजर्वेशन थीम पर हुए दो दिवसीय फेयर में पहले दिन 15 स्कूलों के लगभग 1200 स्टूडेंट्स ने 2000 चिडिय़ाओं का दूरबीन और टेलीस्कोप से दीदार किया।
इसके बाद स्टूडेंट्स ने ड्रॉइंग कॉम्पीटिशन मेंबर्ड्सकी खूबसूरती के रंग बिखेरे। क्विज कॉम्पीटिशन के जरिए भी अपना टैलेंट दिखाया। फेयर में प्रकृति की कक्षा का आनंद भी लिया गया, जिसमें इंग्लैंड के टिम एपिलटन, स्विट्जरलैंड की ब्रिजीट, मुंबई के आनंद शिंदे और रोहित गंगवाल ने पक्षियों की इकोलॉजी की व्याख्या की। इस दौरान स्टूडेंट्स के साथ टीचर्स को भी पक्षी संरक्षण के प्रति जागरूक किया गया।
सेशन में पोयम और हाथियों की समस्या
फेयर में ‘फेयर्स एज कंजर्वेशन एंड टूरिज्म टूल्स, ‘टैगोर की नेचर पोएम्स, ‘एलीफेंट्स विस्परिंग और ‘हाउस स्पैरोज जैसे विषयों पर एजुकेशन सेशन भी हुए। इस दौरान टिम ने कहा कि पक्षी मेले नागरिकों के बेहतर स्वास्थ्य के परिचायक हैं। थिएटर आर्टिस्ट प्रणव मुखर्जी ने नेचर पोएम्स के प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने टैगोर की पुस्तक ‘स्ट्रेबर्ड्सकी प्रकृति पर आधारित कुछ कविताएं भी सुनाईं। आनंद शिंदे और ब्रिजीट ने हाथियों के परिवार के ढांचे के साथ-साथ दुनिया में इनकी वर्तमान स्थिति के बारे में बात की। सजल जुगरन ने हाउस स्पैरो की जानकारी दी।
इकॉलोजी की बातें समझ रहे हैं बच्चे
बर्ड फेयर के तहत बच्चे केवल पंछियों को नहीं निहार रहे, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और इकॉलोजी की बातें भी समझ रहे हैं। कैसे पानी और उसके किनारे साफ सुथरे रखने चाहिए। कैसे साफ रहने से प्रवासी पक्षी यहां आ सकते हैं और कैसे हमारा इकॉलोजिकल सिस्टम बरकरार रह सकता है। हम जीवित रह सकते हैं।